Monday, 25 August 2014

ज़िन्दगी, तू बहुत खूबसूरत है

ए ज़िन्दगी, तू ऐसी क्यों हैं
क्यों इतने सवाल करती है
इतने बवाल खड़े करती है
चुप चाप चल मेरे साथ
दे हाथों में हाथ
मुस्कुरा दे ज़रा
हो तू भी किसी पे फ़िदा
जो होना है सो होगा
न तेरे बस में, न मेरे बस में
तो फिर क्यों करें गिला
किस बात का है शिकवा
चल इसे खुशियों से सजा दें
हसीन सपनों से भर दें
कुछ तेरे, कुछ मेरे
बहुत छोटी है तू ज़िन्दगी
वक़्त नहीं है मेरे पास रुकने का
मुझे तो आसमां को छूना है
और ज़मीन पे रहना है
परेशानी निराशा क्या मुझे नहीं मालूम
और न ही मुझे जानना है
मैं तो बस यूँ ही मस्त हूँ
संग तेरे दुरुस्त हूँ
मिल जा तू भी मेरे रंग में
भूल जा सब परेशानियाँ
भूली बिसरी कहानियाँ
ज़िन्दगी तू ज़िन्दगी में ज़िन्दगी भर दे
रौशनी से संवार दे
तमन्नाओं को निखार दे
इश्क़ का बुखार दे
हो जाए ज़िन्दगी से प्यार सबको ऐसा
न हुआ पहले कभी ऐसा
मजबूर हो जाए दिल ये कहने पे
ए ज़िन्दगी, तू बहुत खूबसूरत है
खूबसूरत है, खूबसूरत है