Tuesday, 17 January 2017

ज़िन्दगी क्या है

ज़िन्दगी क्या है
कैसी है, क्यों है
कुछ समझ नहीं आता
कभी खूबसूरत लगती है
और कभी इतनी बेरहम
रास्ते कितने टेढ़े मेढ़े
जब लगने लगे पहचाने से
बदल लेते हैं राह
बन जाते फिर अनजाने से
मंज़िल तो है
पर रास्ता दिखाई नहीं पड़ता
कदम डगमगा रहे
लेकिन विश्वास कमज़ोर नहीं होता
रुलाती भी है
अगले ही पल हंसा देती है
सच है या भ्रम
सपना या हक़ीक़त
रंगीन या बेरंग
सबको अपने सांचे में ढालती
न तेरी न मेरी
बस अपनी शर्तों पे चलती
इसी का नाम है ज़िन्दगी