Saturday, 5 November 2011

खोज मंजिल की

ये राहें कहाँ ले जाएँ मुझे
मंजिल हैं कहाँ मुझे खबर नहीं
बस यूँ ही मैं चलती जा रही
डर है मुझे कहीं खो न जाऊं
झूठी दुनिया में गुम हो न जाऊं
दो शक्ति दिखाओ रौशनी मुझे
इन रास्तों को पहचानना है
अपनी राह खोज निकालना है
मंजिल तक जाना है
अपना मुकाम बनाना है
अब रोके न रुकूँगी
और न ही ठहरुँगी
चलना है, चलते ही जाना है
हर राह को अपना बनाना है


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