Tuesday, 16 April 2013

राह

ये कौन सी राह पर हम चल दिए
हाथ दिल पर रख कर यूँ बढ़ लिए
हर राह लगे कभी अनजान सी
और कभी यूँ ही लगे पहचानी सी
कहाँ ये ले जाएँ हमें
कोई तो बता दे हमें
हम तो बस राही हैं राहों के
यूँ खोये हैं इसकी बाहों में
मंजिल नज़र न आती है
जहाँ तक भी नज़र जाती है
बस यूँ ही चल दिए हैं
कहीं तो ये ले जाएंगी हमें
कभी तो उस खुदा से मिलवाएंगे हमें
सब मुश्किलें दूर होंगी तभी
जिंदगी तब सफल होगी मेरी

परीक्षा

कितनी परीक्षाएँ लोगे तुम
कितने ही इम्तेहान होंगे
इस ज़िन्दगी के सफ़र में
और कितने धोखे होंगे
कितनी कठनाईयाँ आएँगी अभी
और कितने कांटे होगे
कितना अभी चलना पड़ेगा
दुःख में भी मुस्कराना पड़ेगा
अब क्या देखना बाकी है
तू ही तो बस एक साथी है
तू खफा हो गया तो कुछ नहीं बाकी है
अब बस करो यूँ इम्तिहान लेना
मुझे बस तुम अपनी कृपा देना
और नहीं सह पाऊँगी मैं
टूट के बिखर जाऊँगी मैं
हाथ थाम ले बस अब तू कृष्णा
न हो जीवन में कोई और तृष्णा
इंतज़ार करा है बहुत मैंने
अब न और करवाओ तुम
न अब यूँ बहलाओ तुम
वक़्त अब आ चुका है
इसे यूँ ही जाने न दो
सबके  जीवन में खुशियाँ भर दो
यही बस एक अरदास है मेरी
पूरा करने में न करो अब देरी
जल्दी से अपने भंडार खोलो
और इन गरीबों की झोली भर दो

Thursday, 4 April 2013

कृष्णा

हँसते रहना तुम सदा
यूँ ही खिलखिलाते रहना
तुम्हारी हर लीला है न्यारी
ले लेती है जान हमारी
तुम्हारी तो हर बात निराली है
हर गोपी तुम्हारी दीवानी है
तुम्हारे चेहरे इ जो नूर है
वो हम सबकी पहचान है
तुम ही तो समुद्र का किनारा हो
हम सबके जीने का सहारा हो
बिन तुम्हारे न जी पाएंगे हम
यूँ ही तड़प के मर जाएँगे
अपने चरणों में बसा लो हमें
इस भूल भूलैया से बचा लो हमें