Saturday, 14 March 2015

सपने कुछ महके कुछ बहके

सपने महके महके
हैं कुछ बहके बहके
नए पुराने
धुंदले सफ़ेद
टूटते बिखरते
हर तरह के सपने
मेरी नींदों में ठहरे
ये भी अजीब हैं
काँच समान कच्चे, मगर होते हैं सच्चे
आसमां से ऊँचे, समुद्र से गहरे
पूरा होने पे हँसाते और बिखरने पे रुलाते
आँखों में बस कर
पलकों पे सज कर
दिल में उतर जाते हैं
बिन बताये मुझ पर हावी हो जाते हैं
सजोये हैं कुछ खुली आँखों ने
और कुछ बंद आँखों ने
सुबह शाम
दिन रात
पल पल
ख्यालों में बसेरा डालते हैं
धीरे धीरे मंज़िल तक ले जाते हैं
सपने खूबसूरत हसीन सपने
कुछ अपने
कुछ पराये
सपने तो बस होते हैं सपने




No comments:

Post a Comment