Friday, 16 October 2015

दोस्त तुम जैसा

दोस्त तुम जैसा नसीब से मिलता
न होते तुम तो, जाने मेरा क्या होता
उलझी रहती उलझनों में
सुलझाने वाला हमसफ़र नहीं होता
झूझती रहती तूफानों से
हाथ देकर निकालने वाला न होता
बिखर कर टूट जाती कब से
अगर तेरे कंधे का सहारा नहीं होता
दोस्त तुम जैसा नसीब से मिलता
न होते तुम तो, जाने मेरा क्या होता

हैरानी परेशानी
हर हालात में साथ निभाया
न जाने कितनी बार
मेरी डूबती नैया को किनारे लगाया
मंज़िल को पहुँचने तक
कदम से मेरे अपना कदम मिलाया
और इन सबसे बढ़कर
मुझे अपने आप से मिलवाया
बिन तेरे ये सब मुमकिन न होता
दोस्त तुम जैसा नसीब से मिलता
न होते तुम तो, जाने मेरा क्या होता

नए दोस्तों से मिलकर
कभी कभी तुझे भूल जाती हूँ
रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में
मशरूफ़ हो जाती हूँ
पर तूने कभी गिला न करा
संग मेरे हरदम चला
एहसास मुझे बार बार होता
दोस्त तुम जैसा नसीब से मिलता
न होते तुम तो, जाने मेरा क्या होता

रुत बदली, मौसम बदला
जहां सारा बदल गया
कुछ नहीं अगर बदला
तो वो है मेरी ज़िन्दगी में तेरा साया
कितने लोग आये और चले गए
इक तू ही है
जो हमेशा के लिए ठहर गया
काश कि तू हकीकत में होता
दोस्त तुम जैसा नसीब से मिलता
न होते तुम तो, जाने मेरा क्या होता

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